लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
|
7 पाठकों को प्रिय 150 पाठक हैं |
औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
आख़िरकार हार जाना पड़ा
फ्रेंच पाराट्रपर प्रशिक्षक को आलिंगन करने के गुनाह में पाकिस्तान के पर्यटन मन्त्री, नीलोफ़र बख्तियार के विरुद्ध, कट्टरवादी गुट ने फ़तवा जारी कर दिया। नीलोफ़र को उम्मीद थी कि शासक दल पी.एम.एल. क्यू. उनका साथ देगा। लेकिन कोई भी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ। अपनी पार्टी और सरकार से उन्होंने जिस समर्थन की उम्मीद की थी, वह उन्हें नहीं मिला।
नीलोफ़र के विरुद्ध फ़तवा जारी होने के अगले दिन ही भारत के एक टीवी चैनल ने इस बारे में एक वैचारिक कार्यक्रम का आयो लेने वाले लोग अलग-अलग देश और अलग-अलग अंचलों के थे। लेकिन तकनीक ने सबको एक जगह इकट्ठा कर दिया था। पाकिस्तान की अस्माँ जहाँगीर जो मानवाधिकार के लिए काफ़ी लम्बे अर्से से संघर्ष कर रही हैं, फ़तवे की शिकार नीलोफ़र बख्तियार और इधर भारत से मैं।
अस्माँ जहाँगीर ने कहा, 'पाकिस्तान में हर रोज़ ही औरतों के खिलाफ़ इस क़िस्म के फ़तवे दिये जा रहे हैं। आज किसी मन्त्री के ख़िलाफ़ फ़तवा दिया गया है। इसलिए मीडिया विस्तार से इस खबर का प्रचार कर रहा है और इसी वजह से चारों तरफ़ हंगामा मच गया है।
नीलोफ़र ने कहा, 'यह खास कुछ नहीं है, एक छोटे-से गुट ने फ़तवा जारी किया है। इन लोगों को कोई पहचानता भी नहीं। इन लोगों की बातों की कोई अहमियत भी नहीं है। इस फ़तवे का भी कोई मोल नहीं है। अवाम इसे फूंक में उड़ा देगी। मेरी हिमायत में मेरी पार्टी है, सरकार है, अवाम है। मैंने जो किया, वह दुबारा भी करूँगी।'
लेकिन उस कार्यक्रम में मैंने कहा था, 'छोटा गुट है, यह सोचकर इसे तुच्छ नहीं समझना चाहिए, क्योंकि फतवे के पीछे जो ख़ौफनाक शक्ति काम करती है वह है धर्म! किसी औरत के खिलाफ़ चाहे जितना भी छोटा आदमी फ़तवा जारी करे, चूँकि इसमें धर्म की सहमति होती है, इसलिए उस फ़तवे का सभी कमबख्त समर्थन करेंगे, पुरुषतन्त्र के राघव बोयाल जैसे बेहद खुश हो कर सिर हिलायेंगे। धर्म को अगर राष्ट्र से अलग नहीं किया गया, समानाधिकार के आधार पर अगर क़ानून न बनाये गये, कट्टरवादियों के लिए खोले गये मदरसों की तालीम अगर ख़त्म न की गयी, नारी-शिक्षा और आत्मनिर्भरता का इन्तज़ाम अगर नहीं किया गया, सभी स्तरों पर अगर औरत को क्षमतावान न बनाया गया, तो फ़तवाबाज़ लोग बेफिक्र होकर अपनी हरक़तें जारी रखेंगे। औरत के हक़ और आज़ादी की प्रतिष्ठा के लिए, मानवाधिकार और मानवता की विजय चाहते हों तो धर्म का इस्तेमाल बन्द करना होगा। धर्म को अगर सिर पर बिठायेंगे तो कट्टरवाद भी सिर उठायेगा।'
|
- इतनी-सी बात मेरी !
- पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
- बंगाली पुरुष
- नारी शरीर
- सुन्दरी
- मैं कान लगाये रहती हूँ
- मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
- बंगाली नारी : कल और आज
- मेरे प्रेमी
- अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
- असभ्यता
- मंगल कामना
- लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
- महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
- असम्भव तेज और दृढ़ता
- औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
- एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
- दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
- आख़िरकार हार जाना पड़ा
- औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
- सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
- लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
- तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
- औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
- औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
- पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
- समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
- मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
- सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
- ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
- रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
- औरत = शरीर
- भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
- वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
- काश, इसके पीछे राजनीति न होती
- आत्मघाती नारी
- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
- शांखा-सिन्दूर कथा
- धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं